‘पावर ऑफ मीडिया’ एक दिवसीय राष्ट्रीय सगोष्ठी का आयोजन

नई दिल्ली। मीडिया द्वारा कला और संस्कृति पर और गहराई से मनन करने और उसे सही पैकेजिंग में पेश करने से कला-संस्कृति का प्रस्तुतिकरण भी मीडिया के लिए लाभदायक हो सकता है। डिस्कवरी जैसा एक पूरा चैनल यदि लोक संस्कृति पर ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत कर सकता है, जो दर्शकों को घंटों तक बांधे रहता है और वह लाभ कमा सकता है, तो अखबारों, पत्रिकाओं तथा अन्य खबरिया चैनलों के लिए भी यह कठिन नहीं होना चाहिए। यह माना जाता है कि टीआरपी के लिए चैनलों का सनसनीखेज होना आवश्यक है, जबकि सच यह है कि आज युवा वर्ग सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है, अपनी संस्कृति से जुड़ रहा है। यह उद्गार टेक्निया इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित 31वें एकदिवसीय राष्ट्रीय सगोष्ठी ‘पावर ऑफ मीडिया शेपिंग द फ्यूचर” के दौरान मनमोहन सदाना (संयुक्त महानिदेशक ,पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार) ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत कर विद्यार्थियों, शिक्षको और शोधकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा।
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राम कैलाश गुप्ता, (चेयरमैन टेक्निया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूसंस) ने कहा की जीवन शैली पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में संस्कृति की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस संबंध में संस्कृति, उपभगों की वस्तुओं के बारे में लोगों की पसंद, शैली, पहचान और उन्हें स्वीकार करने की क्षमता पर सीधा प्रभाव डालती है और जीवन शैली को पूर्णतः भिन्न बना सकती है।

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डॉ अजय कुमार (निदेशक टेक्निया इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज) ने कहा की समकालीन परिवेश में हमारे प्रतिदिन के जीवन चक्र में और लगभग सभी क्षेत्रों में मीडिया का हस्तक्षेप बहुत बढ़ गया है, इसके अनेक कारण हैं। मीडिया के विभिन्न जनसंचार माध्यमों ने हमें सनसनीखेज खबरों का आदी बना दिया है। इतिहास, कला, संस्कृति, राजनीतिक घटना आदि सभी क्षेत्र में सनसनीखेज तत्व हावी हैं। सनसनीखेज खबरें जनता के दिलो-दिमाग परलगातार आक्रमण कर रही हैं।

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