संतोष शुक्ला हत्याकांड में विकास दुबे के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने अपील क्यों नहीं की?

-हरेश कुमार,

नई दिल्ली। विकास दुबे को संतोष शुक्ला हत्याकांड में जब लोअर कोर्ट ने रिहा किया तो उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने कभी अपील क्यों नहीं की। यह साफ बताता है कि विकास की पीठ पर स्थानीय नेताओं का ही नहीं राज्य के बड़े-बड़े नेताओं का हाथ था। अन्यथा लोअर कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील जरूर होती।

गैंगस्टर विकास दुबे ने 2001 में तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ल की शिवली थाने में घुसकर सरेआम हत्या कर दी थी। बावजूद इसके इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई। 2006 में वह इस केस से बरी हो गया। पुलिसकर्मियों ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी। गवाही के अभाव में वह विकास दुबे बरी हो गया। राज्य सरकार ने इसके खिलाफ अपील क्यों नहीं की थी। बिना नेताओं की सहायता के वह छूटा कैसे? जब विकास दुबे ने राज्य मंत्री संतोष शुक्ला और दो पुलिसवालों की थाने में घुसकर हत्या की तब वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद राज्य में कुछ समय तक राष्ट्रपति शासन रहा और फिर मायावती, मुलायम सिंह से लेकर अखिलेश यादव और फिर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठे। राजनाथ सिंह-28 अक्टूबर 200 से लेकर 8 मार्च 2002 राष्ट्रपति शासन-8 मार्च 2002 से 3 मई 2002 मायावती – 3 मई 2002 – 29 अगस्त 2003 मुलायम सिंह यादव – 29 अगस्त 2003- 13 मई 2007 मायावती- 13 मई 2007- 7 मार्च 2012 अखिलेश यादव- 15 मार्च 2012 से 19 मार्च 2017 योगी आदित्यनाथ- 19 मार्च 2017 से अब तक आज तक किसी ने विकास दुबे के खिलाफ एक्शन नहीं लिया। विकास दुबे अगर 8 पुलिसकर्मियों को नहीं मारता तो वह आज भी जिंदा होता। जरूरत है इस व्यवस्था को बदलने की, जो एक सामान्य व्यक्ति को अपराधी बनाता और उसे अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करता है और जैसे लगता है कि यह अब बोझ होने लगा है तो एनकाउंटर में मार देता है। इस व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। स्थानीय पुलिस-प्रशासन से लेकर कोर्ट तक रिफॉर्म्स की जरूरत आ चुकी है। समय रहते अगर इसे परिवर्तित नहीं किया गया तो इसके काफी बुरे परिणाम होंगे।

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