‘हम दो हमारे दो’ अब तो इस नारे को लागु कर दो

दुनिया की आबादी बहुत तेज गति से बढ़ रही है। पिछले पांच-छह दशकों में जनसंख्या विस्फोट हुआ है, जो की चिंता का विषय है। तेज रफ्तार से बढ़ती हुई जनसंख्या हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर संकट पैदा करेगी। आज हमारा देश बेरोजगारी, मंहगाई, गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, अराजकता और अन्य कई सामाजिक समस्यों से जूझ रहा है अगर इनकी जड़ पर गौर करे तो जनसंख्या वृद्धि इनका मूल कारण है। आज 21वीं सदी में बढ़ती हुई जनसँख्या विश्व के सामने एक बड़ी समस्या बन गयी है जो की अब एक प्रकार का वैश्विक संकट है। भारत को बढ़ती आबादी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया की करीब 17 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है जिससे आज हम आबादी वाले देशों में चीन के बाद दूसरे पायदान पर है। भारत की आबादी लगभग सवा सौ करोड़ है। इतनी अधिक आबादी के बोझ से भारत स्वयं अपने ही बोझ से दबा जा रहा है। जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है उतनी तेजी से विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं। आज विश्व का हर छटा नागरिक भारतीय है। सवा अरब भारतीयों के धरती, खनिज और अन्य साधन वही है, जो आज से पांच दशक पूर्व थे। लोगों के पास भूमि कम और समस्याएं अधिक बढ़ती जा रही है। बेरोजगारों और अशिक्षितों की संख्या बढ़ती जा रही है। बेरोजगारों की संख्या 6 करोड़ से अधिक हो गई है यद्यपि भारत में अन्न तथा खाद्य वस्त्र आदि के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है किंतु जनसंख्या के भयंकर विस्फोट के कारण भुखमरी और बेकारी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय आय का एक बड़ा भाग जनसंख्या पर खर्च हो जाता है। देश की बढ़ती हुई आबादी से देश के प्राकृतिक और कृत्रिम संसाधनों पर भारी दबाव पड़ रहा है, जनता के जीवन स्तर में गिरावट और गरीबी का प्रमुख कारण बन गयी है। असमान रूप से बढ़ रही जनसंख्या देश के प्रगति पथ में बाधा और बढ़ती हुई मंहगाई दर के लिये जिम्मेवार है। आज देश की जीडीपी रेट 2.7 प्रतिशत है, जिसके अनुसार आज हम विश्व में सातवे और जनसंख्या में दूसरे स्थान पर खड़े है जो की बेहद चिंतनीय है।

अत्यधिक जनसंख्या होने क कारण देश में कोरोना की बीमारी भी बहुत फैली है आज देश कोरोना संक्रमित रोगियों की सूचि में भी तीसरे स्थान खड़ा है। अधिक आबादी होने के कारण स्वास्थ्य सेवाएँ भी उत्तम दर्जे की उपलब्ध नहीं हो पाती है। विश्व की कुल जनसंख्या सन 1800 में एक अरब के करीब थी, 2017 में 7.6 अरब, 2030 तक 8.6 तथा 2050 तक 9.8 अरब होने का अनुमान है। जोकि भारत जैसे विकासशील देशों के लिये बेहद खतरनाक संकेत है।

एक रिपोर्ट क अनुसार एक जनवरी 2020 को भारत में 69000 बच्चों ने जन्म लिया जबकि चीन में 46000 बच्चों ने जन्म लिया, इसका मतलब यह है की भारत ने अभी तक जनसंख्या वृद्धि को एक चुनौती के रूप में नहीं लिया है जबकि चीन ने इसे गंभीरता से लेते हुए जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित किया है। हमारे देश में बढ़ती हुई जनसंख्या का मुख्य कारण अशिक्षा, अज्ञानता, गरीबी और धार्मिक अन्धविश्वास प्रमुख कारण है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की साक्षरता दर 74प्रतिशत थी और ग्रामीण क्षेत्रों की तो बहुत निम्न साक्षरता दर है। अच्छी शिक्षा और बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा न होने के कारण जनसंख्या में हिजाफा हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता जनसंख्या नियंत्रण पर भारी पड़ रही है। कुछ धार्मिक कारणों और अंधविश्वास के कारण भी जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा मिल रहा है। कई परिवारों में लगातार लड़किया जन्म लेती है और परिजनों की लड़के की चाहत के कारण भी जनसंख्या बढ़ रही है। सरकारों की नहीं जनसंख्या नियंत्रण में कोई खाश दिलचस्पी नहीं है। अब तक की ज्यादातर सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के प्रति उदासीन रही है और अपने वोट बैंक के प्रति ज्यादा गंभीर रही है। माल्थस में जनसंख्या वृद्धि के बारे में कहा है की यदि मनुष्य बढ़ती हुई जनसंख्या पर स्वतरू रोक नहीं लगाता तो प्रकृति आगे बढ़ कर स्वयं रोक लगा देती है। 31 मार्च 2011 की 15वीं राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार 0.31प्रतिशत की कमी आयी है जिसका प्रमुख कारण प्राकृतिक आपदायें रही है। कोरोना महामारी भी प्रकृति का प्रकोप है।

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माल्थस ने कहा है की जनसंख्या नियंत्रण कदाचार द्वारा नहीं बल्कि सदाचार द्वारा होना चाहिए। इतिहास में यह है परिमाणित है की विश्व की 19 सभ्यताएं कदाचार के कारण ही विलुप्त हुई है। 70 के दशक में इंदिरा सरकार में संजय गाँधी ने जनसँख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी का प्रयोग किया परन्तु जनसहभागिता, जागरूकता के आभाव और राजनीतीक के भारी के कारण फैसला उल्ट पड़ गया और जनसंख्या रोकथामका प्रयास आपातकाल की भेंट चढ़ गया। अब भी कई बार जब देश में बढ़ती आबादी को रोकने की आवाज उठी है तो जाति और धर्म से जोड़कर विवादास्पद बना दिया जाता है। परन्तु अब निर्याणक फैसले लेने की घड़ी आ गयी है बढ़ती हुई आबादी को रोकने के लिए धरातल पर कार्य करना होगा। सरकारों को कड़े कदम उठाने होंगे। अच्छी शिक्षा, और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंध, परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी रूप के लागु करने तथा जनता को जागरूक करना अति आवश्यक है। राजनितिक दलों को भी जाति, धर्म और वोट बैंक की राजनीती से ऊपर उठ कर प्रभावी कानून और नियम लागु करने होंगें। माना कि जनसंख्या किसी भी देश कि राष्ट्रीय सम्पदा होती है बशर्ते वह सुशिक्षित और प्रशिक्षित हो। बढ़ती हुई जनसंख्या कदाचार, अपराध, बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई बढ़ाने के लिए जिम्मेवार होगी। इससे संस्कृति कि रक्षा करना भी मुश्किल होगा। बेहतर यही होगा कि समाज स्वयं जागरूक होकर इस दिशा में काम करे और आबादी को कम करने के उपाय करें।

-हितेश कुमार भारद्धाज, सिवानी मंडी (हरियाणा)

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