डॉ. राधाकृष्णन के बारे में महत्वपूर्ण बातें

विशेष
1 दक्षिण भारत के तिरूतनी नाम के एक गांव में 1888 को प्रकांड विद्वान और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली और सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।

2 शिकागो विश्वविद्यालय ने डॉ. राधाकृष्णन को तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। वे भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद् के अध्यक्ष भी रहे। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की भांति कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी-अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया।

3 विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था।

4 डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे, फिर भी अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया क्योंकि वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था।

5 भारत की स्वतंत्रता के बाद भी डॉ. राधाकृष्णन ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे पेरिस में यूनेस्को नामक संस्था की कार्यसमिति के अध्यक्ष भी बनाए गए। यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अंग है और पूरे संसार के लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य करती है।

6 सन् 1949 से सन् 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा था।

7 सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की।

8 डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आपको शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। इसलिए 5 सितंबर सारे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

9 डॉ. राधाकृष्णन की विद्वत्ता को देखते हुए उन्हें दुनियाभर के विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। यहां तक कि भारतीय विद्वानों को कमतर समझने वाले अंग्रेज भी डॉ. राधाकृष्णन की विद्वत्ता के कायल थे और इसीलिए ब्रिटिश राज ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी थी।

10 भारत की आजादी से पहले ही एक शिक्षक के रूप में देश को अपनी सेवा देने वाले डॉ. राधाकृष्णन आजीवन शिक्षक ही बने रहे। लेकिन उनकी विद्वत्ता और राष्ट्र के प्रति समर्पण को देखते हुए भारत सरकार ने विभिन्न पदों पर उनकी सेवाएं ली। देश का राष्ट्रपति बनने से पहले डॉ. राधाकृष्णन वर्ष 1949 से 1952 तक सोवियत रूस में भारत के राजदूत रहे। भारत आने के बाद उन्हें संसद के उच्च सदन, राज्यसभा का उपसभापति बनाया गया। पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वे उन्होंने देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवाएं दीं।

11 डॉ. राधाकृष्णन को आज भले ही एक राष्ट्रपति के तौर पर भी याद किया जाता हो, लेकिन वे अपने आपको हमेशा शिक्षक ही मानते थे।इसीलिए उन्होंने अपना जन्मदिन शिक्षकों के लिए समर्पित कर दिया।यही वजह है कि 5 सितंबर को पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

-हरेश कुमार

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