पूर्व डीजीपी ने कहा, विकास दुबे एनकाउंटर को तेलंगाना एनकाउंटर से जोड़ना ठिक नही

नई दिल्ली। गैगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल का कहना है कि विकास दुबे एनकाउंटर को तेलंगाना के रेप-अपराधियों के एनकाउंटर से जोड़ना ठिक नही है। उन्होंने कहा कि अपराधी विकास दुबे के सभी अपराधिक कृत्यों के देखा जाए तो ‘धन लिप्सा’ के साथ ही उसके मन में राजसत्ता के प्रति अजीब तरह की नफरत दिखाई पड़ती है, जोकि आतंकियों और नक्सलियों में विद्यमान रहती है। जबकि तेलंगाना की अमानवीय घटना एक स्त्री के प्रति जघन्य अपराध था। दोनों अपराधों की प्रवृति पूणर्तः भिन्न है। एक मानवता के विरुद्ध कृत्य है तो दूसरा सम्पूर्ण व्यवस्था को चुनौती। अतः दोनों की तुलना ही बेमानी है। उन्होंने कहा,

विकास दुबे, अपराध की दुनिया का वह काला युग था, जिसका हर अपराध, शासन-सत्ता के इकबाल को चुनौती था। 2001 में पुलिस थानें के अंदर राज्यमंत्री संतोष शुक्ला का कत्ल हो या 2020 में 08 पुलिसकर्मियों का जघन्य हत्याकाण्ड, उसकी नजरों में राज्य की शक्ति का पर्याय ‘पुलिस’ की हैसियत और अहमियत को प्रकट करते हैं। बर्बरता का आलम यह कि पुलिसकर्मियों को पकड़ कर गोली मारी गई। इतनी बेरहमी कि शहीद सीओ देवेंद्र मिश्रा का पहले पैर काटा फिर हत्या की। पुलिसकर्मियों के शवों को भी सामूहिक रूप से जलाने की नाकाम कोशिश की गई। यही नहीं विकास दुबे के खास साथी प्रेम प्रकाश पाण्डेय की बहू और विकास के भाई की पत्नी के व्हाट्सप पर घूम रहे दोनों आडियो इस पूरे हत्याकाण्ड के दौरान घर की महिलाओं की सक्रियता की मुनादी कर रहे हैं।

गौरतलब है कि पुलिस की दबिश के सूचना समय से मिल जाने का बावजूद विकास दुबे भागा नहीं बल्कि उसने हथियार और लोग इकट्ठा किए। कुशल नियोजन करते हुए जेसीबी का प्रयोग किया, लाइट कटवा कर अंधेरा किया। यह सम्पूर्ण घटनाक्रम व कार्यशैली विकास दुबे को महज एक अपराधी तक सीमित नहीं करती। नक्सलियों को अवश्य पुलिसकर्मियों का अंगभंग करते व उनके शवों पर नाचते देखा गया है। उसके पीछे उनका उद्देश्य राजसत्ता के विरूद्ध अपनी शक्ति और समार्थय को प्रकट करना होता है। विकास दुबे नक्सली भले न हो लेकिन नक्सल कार्यशैली से प्रेरित अवश्य था। विकास दुबे के पैतृक घर से एके-47 और राइफलें बरामद हुई हैं। संभव है कि उसके और ठिकानों की तलाश में और खतरनाक असलहों की बरामदगी हो सकती है। घटना के कुछ दिन पहले ही उसने थाना चैबेपुर के पुलिस कर्मियों के साथ अपमानजनक हिंसा को अंजाम दिया था। मृतक राज्यमंत्री संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला कहते हैं कि हत्यारे विकास दुबे की यह “स्वंयभू” सरकार वाली प्रवृति तो प्रारम्भ से ही थी लेकिन पूर्व की सरकारों ने उसे महसूस करने की जहमत नहीं उठाई। जिसका अंजाम, हत्या दर हत्या के रूप में हमारे समाने है।

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